छत्तीसगढ़ की महिला पंडवानी गायिकाएं/ Women Pandvani singers of Chhattisgarh

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Published on: 08 July 2019

Mushtak Khan

चित्रकला एवं रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर।
भारत भवन, भोपाल एवं क्राफ्ट्स म्यूजियम, नई दिल्ली में कार्यानुभव।
हस्तशिल्प, आदिवासी एवं लोक कला पर शोध एवं लेखन।

 

 

धार्मिक कथा गायन अथवा वाचन आमतौर पर पुरुषों का कार्य माना जाता है परन्तु छत्तीसगढ़ में इस कार्य को महिला कथा गायिकाओं ने लोकप्रियता के जिस शिखर पर पंहुचा दिया है वह अद्वितीय है। नीची समझी जाए वाली जातियों में जन्मी , अशिक्षित अथवा अर्धशिक्षित इन महिला कलाकारों ने सामाजिक बंधनों , पारिवारिक कठिनाइयों जैसी विषमताओं का जिस साहस और प्रतिबद्धता से सामना किया है वह सराहनिय है।

 

पंडवानी के एक स्थापित कालरूप बनने और उसमें महिला कथागायकों के योगदान की यह यात्रा उतनी आसान नहीं थी। यह सच है कि मंडला जिले की गोंड जनजाति में गोंडवानी गाने की परंपरा रही है और उनकी पंडवानी कथा , मुख्य हिन्दू धारा में प्रचलित महाभारत की कौरव -पांडव कथा से सर्वथा भिन्न है। परन्तु वर्तमान छत्तीसगढ़ के गोंडों में उनकी पारम्परिक गोंडवानी कथा विलुप्त हो चुकी है। समूचे छत्तीसगढ़ के आदिवासी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में महाभारत कथा के पात्र विशेषतः भीम , द्रोपदी और कर्ण अत्यंत लोकप्रिय हैं। इनसे सम्बंधित किवदंतियां एवं लोक कथाएं प्रचलन में हैं। कुछ गांवों में भीम के पैरों के निशान अथवा उसके अन्य चिन्हों के अवशेषों की दन्तकथें भी सुनने में आती हैं।परन्तु उनका कोई वह समग्र पंडवानी स्वरूप नहीं था जो बीसवीं सदी के मध्य में उभर कर सामने आया।     

 

पहले तो लोक नाटिकाओं में पुरुष ही नारी रूप धारण करके स्त्री पत्रों का अभिनय एवं नृत्य-गान करते थे।   छत्तीसगढ़ में भी यही स्थति थी। सन् 1927-28 तक छत्तीसगढ़ में कोई भी संगठित नाचा मंडली नहीं थी । दाउ मंदराजी नें 1927-28 में पहली व्यवस्थित नाचा मंडली बनाई और सन  १९३० के आस -पास उन्होंने नाचा में हारमोनियम का प्रयोग आरंभ किया। सन १९६० के दशक में राजनांदगांव के निकट रवेली गांव के दाऊ मंदराजी ने अपनी नाचा मंडली में देवार जाति की महिलाओं को मंच पर नाचा प्रस्तुति हेतु प्रोत्साहित किया। देवार छत्तीसगढ़ का  एक घुमक्क्ड़ समुदाय है जो गायन -वादन कर भिक्षावृति करता है। छत्तीसगढ़ में यह पहला अवसार था जब मंच पर किसी महिला ने प्रस्तुति दी थी। उनके इस प्रयोग का विस्तार प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने किया जब उन्होंने फ़िदा बाई देवार ,वासंती देवार और पद्मा देवार को अपने प्रसिद्ध नाटक चरणदास चोर में मंच पर प्रस्तुत किया। हबीब तनवीर ने छत्तीसगढ़ के नाचा कलाकारों जिनमें देवार महिलाऐं भी सम्मिलित थीं, को रातों -रात ख्याति और सम्मान दिला दिया। 

 

यह वह समय था जब झाड़ूराम देवांगन पंडवानी गायन में अपनी पहचान बना चुके थे , पंडवानी एक लोकप्रिय कलाविधा बनकर अपने उभार पर थी। दाऊ मंदराजी और हबीब तनवीर के प्रयासों के फलस्वरूप  महिलाएं प्रदर्शनकारी कलाओं में अपना भविष्य तलाशने का साहस जुटा रहीं थीं। फिर भी सवर्ण एवं कुलीन घरों की स्त्रियां इस सबसे दूर रहीं।

 

सन १९६९ में दुर्ग के पास स्थित कातल  बोढ़ गांव की लक्ष्मी बाई ने पंडवानी गायन में पदार्पण किया। पंडवानी गायन उस समय नाचा मंडली में नृत्य करने से बेहतर और एक धार्मिक विषय से सम्बद्ध होने के कारण अधिक सम्माननिय कार्य रहा होगा। लक्ष्मी बाई बंजारे , सतनामी समुदाय की थीं,उनकर गुरु और रागी कुलबुल सतनामी अपने समय के नामी गायक थे और राग -रागनी के अच्छे जानकार थे। सतनामियों में पंथी गीत और भजन गायकी का प्रचलन था। वे महाभारत कथा के कुछ प्रसंगों के जानकार थे ,उन्ही की प्रेरणा से लक्ष्मी बाई बंजारे ने पंडवानी गाना आरम्भ किया था।  आरम्भ में वे भी नारी सुलभ लज्जा के कारण पुरुष वेश बनाकर , बंगाली का कुरता और पुरुषों जैसा कोट पहनकर पंडवानी गाती थीं।उनकी गायन शैली बैठकर गाने वाली थी। लगभग दस वर्ष पहले उनका देहांत हो गया।

 

 

उनके कुछ ही समय बाद सन १९७०-७१ में तीजन बाई ने पंडवानी गाना आरम्भ किया। तीजन बाई विराट और सुदर्शन व्यक्तित्व की धनी तथा भारी एवं मधुर कंठ की स्वामिनी गायिका हैं। वे खड़े होकर प्रस्तुति करती हैं ,उन्हें शासकीय संस्थाओं का सक्रीय सहयोग मिला। अपनी प्रतिभा और अथक परिश्रम से उन्होंने न केवल पंडवानी को स्थापित और गौरान्वित किया बल्कि स्वयं और छत्तीसगढ़ राज्य का भी गौरव बढ़ाया। सन २०१९ में उन्हें भारत सरकार द्वारा पंडवानी कालरूप में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मविभूषण सम्मान प्रदान किया गया है।छत्तीसगढ़ राज्य में वह ऐसी पहली महिला कलाकार हैं जिन्हें यह सम्मान मिला है।यद्यपि कानों से सुनने में कुछ कठिनाई होने लगी है परन्तु  लगभग पैसठ वर्षीय तीजन बाई अभी भी सक्रीय हैं। खड़े होकर पंडवानी गायन का आरम्भ तीजन बाई की देन है। उन्होंने अपने से वरिष्ठ और ख्यातिनाम पंडवानी गायक झाडूराम देवांगन से भिन्न गायन शैली विकसित की। कथा गायन के साथ पहनावा और भाव अभिनय तथा संवादों की प्रस्तुति में स्वर का प्रभावशाली उतार -चढाव आदि पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया और उसके सफल प्रयोग से पंडवानी प्रस्तुति को अधिक अभिव्यंजनापूर्ण बनाया।  

 

Padma Vibhushan Tijan Bai
पद्मा विभूषण तीजन बाई , गनियारी दुर्ग, छत्तीसगढ़ , Padma Vibhushan Teejan Bai, Ganyari, Durg, Chhattisgarh, courtesy: Mukesh Yengal,

PAdma Vibhushan Tijan Bai and Mandali

 तीजन बाई और उनकी मंडली Teejan Bai and mandali

 

Pandavani Singer, Tijan Bai

 Teean Bai

 

Fukuoka Prize

Fukuoka Prize awarded to Teejan Bai

 

Padma Vibhushan Award

Padma Vibhushan Award, Tijan Bai

 

Padma Vibhushan Tijan Bai

 Teejan Bai

 

 

सन उन्नीस सौ सत्तर के दशक के आरम्भ में ही रन चिरई ग्राम की मीना साहू ने पंडवानी के कार्यक्रम देना आरम्भ किया। वे तेली समुदाय की हैं और उन्होंने स्वप्रेरणा से इस क्षेत्र में प्रवेश किया।उस समय एक रैमन बाई नामकी महिला भी पंडवानी गा रही थीं ,परन्तु वे अधिक  समय तक क्रियाशील नहीं रहीं। वे कहती हैं उन्होंने तीजन बाई और लक्ष्मी बाई बंजारे के कार्यक्रम देखे और आकाशवाणी पर सुने, उन्हें लगा कि वे भी यही करेंगी। पांचवी कक्षा तक पढ़ी मीना साहू ने तेरह वर्ष की आयु में पंडवानी कार्यक्रम में भाग लेना आरम्भ कर दिया था। उनके गांव रन चिरई जिला रायपुर में एक तुलसी राम साहू नामके व्यक्ति थे जो महाभारत की कथा और कुछ गाना -बजाना भी जानते थे ,मीना साहू ने उन्ही से पंडवानी सीखी। वे कहती हैं उस समय सबल सिंह चौहान द्वारा लिखित महाभारत अधिक प्रचलन में थी पर मैंने कल्याण महाभारत , बाल महाभारत , सचित्र महाभारत  और व्यास महाभारत भी पढ़ी। आरम्भ में उनके समाज के लोगों ने कुछ विरोध किया परन्तु माता -पिता और परिवारवालों का प्रोत्साहन और सहयोग पाकर वे पंडवानी गायन में जुटी रहीं। उनकी तीजन बाई से बहुत आत्मियता है ,उनके साथ कार्यक्रम भी किये हैं।

 

Pandavani Singer, Meena Sahu

, मीना साहू ,रण चराई , बालोद , छत्तीसगढ़ Meena Sahu,  Ran Charai, Balod, Chhattisgarh

 

 

सन उन्नीस सौ अस्सी के दशक के आरम्भ में प्रभा यादव ने पंडवानी गायकी की दुनियां में कदम रखा। लक्ष्मी बाई बंजारे , तीजन बाई और मीना साहू के विपरीत प्रभा यादव ने अपने गुरु झाडूराम देवांगन से विधिवत पंडवानी गायन की शिक्षा ली थी। उनसे पहले आने वाली पंडवानी गायिकाओं ने  किसी पंडवानी गुरु से विधिवत शिक्षा नहीं ली थी , वे केवल अन्य गायकों को सुनकर ,स्वयं के अभ्यास से आगे बढ़ी थीं परन्तु प्रभा यादव झाडूराम देवांगन की विरासत लेकर चल रही थीं।जिला रायपुर के चंदखुरी गांव के एक राउत अहीर परिवार में जन्मी प्रभा ने कक्षा तीन तक पढ़ाई की फिर उसके बाद झाडूराम देवांगन के परिवार में उनके साथ रहकर पंडवानी सीखी। वे अपने गुरु और गुरु परिवार के प्रति समर्पित एवं निष्ठावान शिष्या के रूप में सदैव उनका गुणगान करती हैं।  उन्हें इस बात का गर्व है कि वे झाडूराम देवांगन की परम्परा को आगे बढ़ा रही हैं।

 

Pandavani Singer, Prabha Yadav

प्रभा यादव, चंदखुरी , रायपुर , Prabha Yadav, Chandakhuri, Raipur

 

 

सन उन्नीस सौ अस्सी के दशक के मध्य तक पंडवानी इतनी लोकप्रिय और व्यवसायिक हो गयी थी कि छत्तीसगढ़ की अनेक महिला कलाकारों ने इसे अपना व्यवसाय और आजीविका का साधन बन लिया था। इनमें शांति चेलक, कुमारी निषाद ,इंदिरा जांगड़े ,अमृता साहू ,प्रतिमा बारले ,कुंती गन्धर्व ,जाना बाई सतनामी ,पूर्णिमा साहू , रितु वर्मा आदि प्रमुख महिला पंडवानी कलाकार हैं । 

 

Pandavani Performer, Kumari Nishad

 कुमारी निषाद, अखलोद दीघ , दुर्ग , छत्तीसगढ़   Nishad, Aklor Deeh, Durg, Chhattisgarh

 

Nishad sisters

निषाद बहने , कुमारी और चमेली निषाद, The Nishad sisters- Kumari Nishad and  Chameli Nishad

 

Pandavani Performer, Indira Jhangde

 इंदिरा झंगडे, कुथरैल , रयपुर छत्तीसगढ़  , Indira Jhangde,  Kuthrel, Raipur, Chhattisgarh.

 

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and archaeology, Government of Chhattisgarh to  document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.